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महामारी से तबाही और संकट में वैज्ञानिक

              पिछले बसंत में हांगकांग की झीलों और नदियों में दुर्लभ  गुलाबी डॉल्फिन दिखाई पड़े तो वेल्स के एक शहर में पहाड़ी बकरियों का झुंड इकट्ठा हो गया था। कोविड-19 के बीच दुनिया भर के प्रवासी जब घर लौट रहे थे, तब प्रकृति का विस्तार सुनसान शहरों तक होने लगा था। यह बदलाव इतना तेज और चौंकाने वाला था कि वैज्ञानिकों ने इसे एक नया नाम दिया -एंथ्रोपोज यानी वैश्विक स्तर पर मानवीय गतिविधियों में कमी आना। एंथ्रोपोज का अर्थ सिर्फ वन्यजीवों का शहरी इलाकों तक फैल जाना नहीं था। इसने पृथ्वी के रासायनिक समीकरण तक बदल दिए। फैक्ट्रियों के खामोश हो जाने और यातायात में भारी कमी आने से पूरे उत्तरी गोलार्द्ध में ओजोन स्तर में 7% की गिरावट आई। भारत में वायु प्रदूषण का स्तर एक तिहाई तक कम हो गया, तो सिंधु नदी घाटी में स्थित पहाड़ो की बर्फीली चोटियां अधिक चमकीली दिखने लगी। पृथ्वी के तापमान में भी अस्थाई तौर पर ही सही, पर उल्लेखनीय कमी आई।


लेकिन महामारी ने समग्र मानवता को इतना बड़ा नुकसान पहुंचाया, जिसका खामियाजा आने वाले दशकों तक भुगतना पड़ेगा। अभी तक कोविड-19 के कारण 24 लाख लोग मारे गए हैं, जबकि दसियों लाख लोग बीमार है। अमेरिका में 2020 के पहले 6 महीने में जीवन प्रत्याशा में 1 साल की कमी आई, जबकि अश्वेत अमेरिको की औसत उम्र 2.76 साल घट गई अंतररष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2020 से 2025 के बीच $220 खरब डॉलर का घाटा होने वाला है। इतनी भीषण तबाही के पीछे कोरोनावायरस का हाथ है। जबकि इन सौ लाख करोड़ वायरसों का वजन बारिश की एक बूंद से भी कम होता है।


पिछली जनवरी में सोर्स-कोव-2 स्ट्रेन की खोज के बाद से वैज्ञानिक बिरादरी इस तथ्य के अनुसंधान में जुटी है कि इतनी नन्ही सी चीज दुनिया भर में ऐसी भीषण तबाही आखिर कैसे फैला सकती है। उन्होंने इस स्पाइक प्रोटींस की माप की है, जो कोरोनावायरस मानव कोशिकाओं में तेजी से फैलाता है। वैज्ञानिकों ने वायरस की उस चाल का रहस्योद्घाटन किया है जो वह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को बेअसर करने के लिए चलता है। उन्होंने इसका अध्ययन भी किया है कि एक संक्रमित कोशिका किस तरह लाखों वायरस पैदा करती है। इन शोधों ने सोर्स-कोव-2 से संबंधित काफी खुलासे किए हैं, लेकिन बड़े सवाल अब भी अनुत्तरित हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या कोरोनावायरस जीवित रहते हैं। दरअसल पिछली करीब एक सदी से, विषाणुओ के बारे में जानने के बाद से ही, वैज्ञानिक इस प्रश्न से जूझ रहे हैं कि क्या वायरस जीवित होते हैं। इस प्रश्न का जवाब कठिन है क्योंकि वायरस की चाल अजीब होती है। इस प्रश्न का जवाब इसलिए भी कठिन है क्योंकि वैज्ञानिक वायरस के ब्रह्मांड होने के अवसर पर भी एकमत नहीं है। इस ब्रह्मांड में जीवन के लक्षण भले ही स्पष्ट हो, लेकिन इस आधार पर पूरी सृष्टि के लिए कोई निष्कर्ष निकाल लेना संभव नहीं है। हजारों वर्षों से लोग वायरस की शिनाख्त से बीमारियों के स्रोत के रूप में ही करते थे। वैज्ञानिकों ने उन बीमारियों को चेचक, रैबीज और इनफ्लुएंजा जैसे नाम दिए। 1600 शताब्दी में एंटोनियो वैन लुइनहॉक ने जब माइक्रोस्कोप से पानी की बूंदों की गहन जांच की, तो ने बैक्टीरिया और दूसरी कई चीजों के बारे में पता चला। लेकिन उनसे भी छोटे वायरसों की शिनाख्त तब नहीं हो पाई थी। दो सदी पहले वैज्ञानिकों ने वायरसों के बारे में पता तो कर लिया, लेकिन वे अब भी हमारी आंखों से ओझल है।



सास कोव-2 कोरोनावायरस से संबंधित है। वर्ष 1967 में जून अलमीडा ने इस वायरस के स्पाइक प्रोटीन को देखते हुए यह नाम दिया था, क्योंकि यह उन्हें सूर्य ग्रहण से मिलता-जुलता लगता था। अलमिडा जैसे वैज्ञानिकों ने जहां इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से वायरसों को देखना शुरु किया, वहीं जैव रासायनिको को उनके अवयवों को अलग अलग करने में सफलता मिली। सिर्फ यही नहीं कि बरसों का आकार उन्हें जीवन की हमारी परिभाषा से अलग करता है, बल्कि उनका जीवन भी कोशिकीय जीवन से अलग चलता है। वायरस हमारी ही तरह प्रोटीन से बने होते हैं। लेकिन वे प्रोटीन बनाने वाली फैक्ट्रियों के साथ नहीं होते  उनमें भी एन्जाइम भी नहीं होते, जो भोजन को ऊर्जा में बदलते हैं। वे एक से असंख्य हो जाते हैं पर ऐसा खाने से, शारीरिक वृद्धि से या प्रजनन से नहीं होता। वे अमूनन कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें नए वायरस तैयार करने पर मजबूर करते हैं।


वर्ष 1935 में वैज्ञानिक वेंडेल स्टेनली ने तंबाकू के पौधों को नुकसान पहुंचाने वाली वायरसों को शीशियों में इकट्ठा कर बंद कर लिया था, जो नमक की तरह दिखते थे। कई महीने बाद उन्होंने उन छोटे-छोटे दानों को पानी में मिलाया, तो वे दानो को पानी में मिलाया, तो वे दाने फिर वायरस में बदल गए। इस पर द टाइम्स ने लिखा था डॉक्टर स्टेली की खोज के बाद जीवन और मृत्यु के फर्क ने, सीमित अंश में ही सही, अपना अर्थ खोज दिया है।


सोर्स- द न्यूयॉर्क टाइम्स
कार्ल जिमर

महामारी से तबाही और संकट में वैज्ञानिक महामारी से तबाही और संकट में वैज्ञानिक Reviewed by Akash on March 21, 2021 Rating: 5

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