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असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में हाई कोर्ट का आदेश, OBC के मेरिटधारी उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में शामिल कर आयोग ले साक्षात्कार

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने उत्तर प्रदेश शासन और उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के फैसले के खिलाफ रोहित वर्मा, आयुष रंजन चौधरी और अन्य की ओर से दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान दिया आदेश। कोर्ट ने छह सप्ताह के अंदर अनारक्षित वर्ग में याचिकाकर्ताओं को शामिल कर साक्षात्कार की प्रक्रिया पूर्ण करने का दिया निर्देश...


इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने बुधवार को एक अहम फैसले में कहा कि यदि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवार से अधिक अंक लाता है तो आरक्षित वर्ग का वह उम्मीदवार किसी प्रकार की छूट लेने के बावजूद अनारक्षित वर्ग की रिक्तियों/पदों के सापेक्ष ही चयनित होगा। न्यायालय ने इस आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रोहित वर्मा, आयुष रंजन चौधरी  और अन्य की याचिकाओं का निरस्तारण करते हुए उत्तर प्रदेश शासन और उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग को छह सप्ताह के अंदर याचिकाकर्ताओं को अनारक्षित वर्ग में शामिल कर साक्षात्कार की प्रक्रिया सम्पन्न कराने का आदेश दिया।


न्यायमूर्ति मनीष कुमार की एकल पीठ ने दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद अपने फैसले में कहा, ''इसमें कोई विवाद नहीं है कि यदि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवार से अधिक अंक लाता है तो आरक्षित वर्ग का वह उम्मीदवार किसी प्रकार की छूट लेने के बावजूद अनारक्षित वर्ग की रिक्तियों/पदों के सापेक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा, जैसा कि इस न्यायालय और शीर्ष अदालत के विभिन्न आदेशों में वर्णित है।"


पीठ ने अपने आदेश में यह भी लिखा है, "यह स्पष्ट है कि विधि के तहत आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार के पास अपनी मेरिट के आधार पर दोनों वर्गों (सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्ग) की रिक्तियों के सापेक्ष चयनित होने का अधिकार है। अनारक्षित वर्ग की रिक्तियां किसी भी व्यक्ति के लिए आरक्षित नहीं होती हैं। सामान्य वर्ग के लिए निर्धारित मेरिट सूची के न्यूनतम अंक से ज्यादा अंक हासिल करने वाला आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अनारक्षित वर्ग की रिक्तियों के सापेक्ष समायोजित किया जाएगा, ना कि उस आरक्षित वर्ग की रिक्तियों के सापेक्ष जिसके तहत उसने आवेदन किया है।"

पीठ ने विवादित मामले को तीन बिन्दुओं परखा। पहला,  ऐसे मामले में, जहां आरक्षण का लाभ विशेष वर्गों को मुहैया कराया जाता है,  क्या उम्मीदवारों की सूची वर्गवार बनाना और सामान्य, ओबीसी और एससी/एसटी नाम से उम्मीदवारों को अलग करना विधिसम्मत है? इसके जवाब में पीठ ने लिखा कि ऐसे किसी प्रावधान के तहत अथवा उसके बिना वर्गवार उम्मीदवारों की सूची बनाना विधिसम्मत है। दूसरा, क्या आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार अपनी मेरिट की आधार पर अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों की सूची में शामिल हो सकता है? इसके जवाब में पीठ ने लिखा, ''हां, सूचीबद्ध होने के बाद आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के साथ खुली भर्ती में शामिल होते हैं और उनसे ज्यादा अंक हासिल करते हैं तो वे अपनी मेरिट के आधार पर अनारक्षित वर्ग की रिक्तियों पर चयनित होंगे। अगर आवश्यक हुआ तो उम्मीदवारों का अनुपात रेगुलेशन-2014 के रेगुलेशन-6(2) में उपलब्ध व्यवस्था के तहत रिक्तियों की संख्या के सापेक्ष और अधिक बढ़ाया जा सकता है।" तीसरा, भर्ती प्रक्रिया के किस स्तर पर रेगुलेशन-2014 में उल्लेखित प्रावधानों के तहत मेरिट के आधार पर साक्षात्कार के लिए बुलाए जाने वाले उम्मीदवारों की सूची विशेष तौर पर तैयार करना है? जवाब में पीठ ने लिखा है, "साक्षात्कार के पूर्व उच्च अंक प्राप्तआरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को निकालना चयन प्रक्रिया के पूर्ण होने के पहले उम्मीदवार को अंतिम रूप से खारिज करना है। रेगुलेशन-2014 को किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान के उल्लंघन के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। रेगुलेशन-2014, 1994 के यूपी एक्ट नं.-4 की धारा-3(6) और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 एवं 16 को आपसी सामंजस्य के रूम में देखना पड़ता है। स्थिति यह है कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को भविष्य में चयन से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है, यदि वह साक्षात्कार में बुलाए जाने वाले अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवार के लिए निर्धारित कट-ऑफ मार्क्स से ज्यादा मार्क्स हासिल किया है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश उच्चतर सेवा आयोग ने सूबे के राजकीय एवं वित्तपोषित महाविद्यालयों में विभिन्न विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए विज्ञापन निकालकर आवेदन मांगा था। चयन प्रक्रिया के तहत दो चरण थे। लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार। लिखित परीक्षा के चयन के बाद आयोग ने पिछले साल 24 जून को अधिसूचना संख्या-47 जारी किया। इसके तहत उसने 33 विषयों में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन मांगे। इसमें समाज शास्त्र के 273 पद भी शामिल थे जिन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया गया था। अनारक्षित वर्ग के लिए 167 पद निर्धारित किए गए थे जबकि ओबीसी के लिए 63 और एससी-एसटी के लिए 43 पद निर्धारित थे। अनारक्षित वर्ग के 167 पदों पर कुल 838 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। इनका लिखित परीक्षा में न्यूनतम कटऑफ मार्क्स 103.33 निर्धारित किया गया। ओबीसी के 63 पदों के सापेक्ष 385 उम्मीदवारों को बुलाया गया था जिनका न्यूनतम कटऑफ मार्क्स 133.34 निर्धारित किया गया। एससी-एसटी वर्ग के 43 पदों के सापेक्ष 217 उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया जिनका न्यूनतम कटऑफ मार्क्स 112.36 निर्धारित किया गया। उम्मीदवारों को प्रत्येक वर्ग में 1:5 के अनुपात में बुलाया गया था।

उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने वाले ओबीसी के रोहित वर्मा, आयुष रंजन चौधरी और अन्य का नाम तीनों वर्गों में चयनित उम्मीदवारों में नहीं था जबकि वे अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के लिए निर्धारित न्यूनतम कट ऑफ मार्क्स 103.37 से कहीं ज्यादा था। आयोग द्वारा आयोजित लिखित परीक्षा में रोहित वर्मा ने 125.84 अंक हासिल किया था जबकि आयुष रंजन चौधरी और एक अन्य ने क्रमशः 125.44 और 116.48 अंक प्राप्त किया था। आयोग के फैसले से नाराज इन उम्मीदवारों ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ बेंच में अधिवक्ता गिरीश चंद्र वर्मा, अरुण कुमार वर्मा और करुणाकर श्रीवास्तव के माध्यम से याचिका दाखिल की। इसकी सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने बुधवार को इनके पक्ष में फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने फैसले में लिखा है कि पूरी चयन प्रक्रिया को रद्द करने की जरूरत नहीं है क्योंकि ऐसी कोई याचना नहीं की गई है। चयन प्रक्रिया को प्रभावित किए बिना न्यायालय आए याचिकाकर्ताओं को राहत दी जा सकती है। उन्होंने आदेश में लिखा है, "याचिकाकर्ताओं को रुकी हुई चयन प्रक्रिया को रद्द किए बिना राहत दी जा सकती है। इसलिए यह निर्देशित किया जाता है कि साक्षात्कार के लिए बुलाए गए अनारक्षित वर्ग के अंतिम उम्मीदवार से अधिक अंक प्राप्त करने वाले याचिकाकर्ताओं, जो न्यायालय आए हैं, को अनारक्षित वर्ग की रिक्त सीटों के सापेक्ष होने वाले साक्षात्कार की चयन प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। किसी भी प्रकार की देरी से बचने के लिए प्रतिवादी संख्या-2 एवं 3 को आदेश की प्रमाणित प्रति मिलने की तिथि से छह सप्ताह के अंदर जल्द से जल्द चयन प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए भी निर्देश दिया जाता है।"

बता दें उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की ओर से आयोजित 32 विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसर का चयन इसी प्रक्रिया के तहत किया गया है। समाज शास्त्र को छोड़कर सफल उम्मीदवारों के पक्ष में नियुक्ति पत्र जारी कर दिया गया है।

वहीं, उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की आरक्षण विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन करने वाले राष्ट्रीय विद्यार्थी चेतना परिषद के संयोजक मनोज यादव ने उच्च न्यायालय के फैसले को छात्रों और बेरोजगारों के आंदोलन की जीत बताया। उन्होंने इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल उम्मीदवारों से आयोग के फैसले को न्यायालय में चुनौती देने की अपील की है। उनका दावा है कि उच्च न्यायालय जाने वाले रोहित वर्मा, आयुष रंजन चौधरी और डॉ. विरेंद्र उनके संगठन से जुड़े हैं। उन लोगों ने ही उन्हें न्यायालय जाने के लिए प्रेरित किया था।

असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में हाई कोर्ट का आदेश, OBC के मेरिटधारी उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में शामिल कर आयोग ले साक्षात्कार असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में हाई कोर्ट का आदेश, OBC के मेरिटधारी उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग में शामिल कर आयोग ले साक्षात्कार Reviewed by Akash on June 19, 2020 Rating: 5

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