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Class 7 Lesson 2

इकाई 2.                                          रेशो से वस्त्र तक

पौधे एव जन्तुओ से प्राप्त रेशे

पोधो से प्राप्त होने वाले रेशे पादप रेशे कहलाते हैं। कपास के रेशो का उपयोग कागज, सूती वस्त्र, चादर, पर्दे 
अंगोरा बकरी 
आदि बनाने में किया जाता है। इसी प्रकार जन्तुओ से प्राप्त होने वाले रेशो को जांतव रेशे कहा जाता हैं। उन तथा रेशम प्रमुख जांतव रेशे है। ऊन का उपयोग स्वेटर तथा याक के शरीर के बालों से तथा रेशम के रेशे रेशम कीट के कोकून से प्राप्त किए जाते हैं।

ऊन प्रदान करने वाले जंतु

सामान्यतः भेड़ की त्वचा के बाल से प्राप्त किए जाने वाले मुलायम घने रेशो से ऊन प्राप्त किया जाता है। जिन वास स्थान पर बालो से ढके जो जंतु पाए जाते हैं वहाँ उन्ही जन्तुओ के रेशो से ऊन प्राप्त किया जाता है। 

ऊन तैयार करने की विधि

भेड़ के रेशे दो प्रकार के होते है
1- दाढ़ी के रूखे बाल
2- त्वचा पर स्थित तंतुरूपी मुलायम बाल

भेड़ पालन और प्रजनन

भेड़ की कुछ नस्लो के शरीर पर घने बाल होते हैं जिनसे बड़ी मात्रा में अच्छी गुणवत्ता वाली ऊन प्राप्त होती है। ऐसी भेड़ो का उपयोग अच्छी नस्ल की भेड़ो को जन्म देने के लिए भी किया जाता है। नस्ली भेड़ो को जन्म देने के लिए जनक के रूप में इनके चयन की प्रक्रिया को वर्णात्मक प्रजनन कहते हैं। जैसे:-
  बाखरवाल                               जम्मू कश्मीर                                    ऊनी शालो के लिए
  रामपुर बुशायर                        उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश               भूरे ऊन वाले कम्बल के लिए
  नाली                                       राजस्थान, पंजाब, हरियाणा                गलीचे के लिए
  लोही                                       राजस्थान, पंजाब                               ऊनी वस्त्र के लिए
  मारवाड़ी                                  गुजरात                                            मोटी व रुक्ष ऊन कम्बल के लिए
  पाटनवाड़                                गुजरात                                             होजरी के लिए


कुछ और भी जाने

ऊन उद्योग हमारे देश में अनेक व्यक्तियों के लिए जीविकोपार्जन का महत्वपूर्ण साधन है। परंतु जंतु रेशो की
कश्मीरी बकरी 
 छटाई करने वाले कारीगर कभी-कभी एंथ्रेक्स नामक जीवाणु द्वारा संक्रमित हो जाते हैं। जो कुछ समय बाद में एक घातक रुधिर रोग सोर्टर्स रोग के रूप में दिखाई देने लगता है। किसी भी उद्योग में कारीगर द्वारा ऐसे जोखिमो को झेलना व्यावसायिक संकट कहलाता है। भेड़ो की संख्या की दृष्टि से चीन और ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। गुणवत्ता की दृष्टि में न्यूजीलैंड की मैरिनो भेड़ो से सबसे अच्छा ऊन प्राप्त होता है।

रेशम कीट के एक कोकून से 300 मीटर से लेकर 900 मीटर तक लंबा रेशमी धागा निकलता है। एक किलोग्राम रेशम प्राप्त करने के लिए लगभग 5500 कोकुनों की आवश्यकता होती है। रेशम कीट पालन में लगभग एक प्रतिशत कोकून से रेशम प्राप्त न करके उन्हें वयस्क रेशम कीट बनकर तैयार होने के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि वे रेशम निर्माण के लिए पुनः नया जीवन चक्र प्रारंभ कर सके।

 हमने सीखा
  • भारत में ऊन प्रमुख रूप से भेड़ की त्वचा के मुलायम बालो से प्राप्त किए जाते हैं।
  • भेड़ के अतिरिक्त याक, ऊंट, बकरी आदि के त्वचीय बालों से भी ऊन प्राप्त किया जाता है।
  • भेड़ के बालों को ऊन के धागों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को ऊन का संसाधन कहते हैं।
  • रेशम कीट के कोकून से रेशम प्राप्त किया जाता है।
  • रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीटो के पालन का विज्ञान सेरीकल्चर कहलाता है।
  • कोकूनो से रेशम के रेशे निकालने की प्रक्रिया रेशम की रीलिंग कहलाती है।
  • ऊन से स्वेटर, शॉल, कम्बल, कालीन, गलीचे आदि बनाए जाते हैं।
  • रेशमी धागों से रेशमी बनारसी साड़िया, घाघरा


-:अभ्यास प्रश्न:-
1.  सही उत्तर लिखिये-
  (क)  ऊन धारण करने वाले जंतु हैं- उपरोक्त सभी(याक,ऊंट, ेलपेका, लामा,अंगोरा बकरी,कश्मीरी बकरी) 
  (ख)  भेड़ तथा रेशम कीट होते हैं- शाकाहारी
  (ग)  भेड़ के रेशो की चिकनाई, धूल और गर्त निकालने लिए की जाने वाली प्रक्रिया कहलाती है-अभिमार्जन 
  (घ)  रेशम है- जंतु रेशे

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
  (क) ऊन सामान्यतः पालतू भेड़ो के त्वचीय बालों से प्राप्त किए जाते हैं।
  (ख) ऊन के रेशो के बीच वायु रुककर ऊष्मा की कुचालक का कार्य करती है।
  (ग) रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट पालन विज्ञान सेरीकल्चर कहलाता है।
  (घ) प्यूपा के चारो ओर रेशम ग्रंथि से स्रावित पदार्थ से लिपटी संरचना कोया या कोकून कहलाती है।
  (ड़) रेशम उद्योग के कारीगर एन्थ्रैक्स नामक जीवाणु द्वारा संक्रमित हो जाते हैं।

3. सही व गलत का निशान लगाइए-
 (क) कश्मीरी बकरी के बालों से पश्मीना ऊन की शाले बनायी जाती है।(सही)
 (ख) ऊन प्राप्त करने के लिए भेड़ के वालो को जाड़े के।मौसम में काटा जाता है।(गलत)
 (ग) अच्छी नस्ल की भेड़ो को जन्म देने के लिए मुलायम बालो वाली विशेष भेड़ो की चयन प्रक्रिया वर्णात्मक प्रजनन कहलाती है।(सही)
 (घ) सिल्क का धागा प्राप्त करने के लिए प्यूपा से वयस्क कीट बनने से पूर्व ही कोकून को उबलते पानी मे डाला जाता है।(सही)
(ड़) रेशम कीट के अण्डे से प्यूपा निकलते हैं।(गलत)

4. मिलान कीजिए-
(क) अभिमार्जन                                                      काटी गई उन की सफाई
(ख) कोकून                                                             रेशम के रेशे उत्पन्न करता है
(ग) याक                                                                उन देने वाला जंतु
(घ) शहतूत की पत्तियां                                          रेशम कीट का भोजन
(ड़) रिलिंग                                                             रेशम के रेशे का संसाधन

5. प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
 (क) ऊन किसे कहते हैं ? उन जन्तुओ के नाम लिखिए जिनसे ऊन प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर- सामान्यतः भेड़ की त्वचा के बाल से प्राप्त किए जाने वाले मुलायम घने रेशो से ऊन कहा जाता है। जैसे- याक, ऊंट, बकरी आदि।

(ख) ऊन प्रदान करने वाले भेड़ो की कुछ भारतीय नस्लो के नाम लिखिये ?
उत्तर- बाखरवाल, रामपुर बुशायर, नाली, लोही, मारवाड़ी, पाटनवाड़, अंगोरा बकरी, कश्मीरी बकरी आदि।

(ग) वर्णात्मक प्रजनन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- भेड़ की कुछ नस्लो के शरीर पर घने बाल होते हैं जिनसे बड़ी मात्रा में अच्छी गुणवत्ता वाली ऊन प्राप्त होती है। ऐसी भेड़ो का उपयोग अच्छी नस्ल की भेड़ो को जन्म देने के लिए भी किया जाता है। नस्ली भेड़ो को जन्म देने के लिए जनक के रूप में इनके चयन की प्रक्रिया को वर्णात्मक प्रजनन कहते हैं।

(घ) जाड़ो में ऊनी वस्त्रो को पहनना क्यों आरामदायक होता है ?
उत्तर- ऊनी रेशो के बीच वायु अधिक मात्रा में भर जाती है जो ऊष्मा की कुचालक की भांति कार्य करने लगती है। इस प्रकार सर्दी के मौसम में ऊनी वस्त्र पहनने पर शरीर का ताप स्थिर रहता है और ठंड नही लगती है, यही कारण है कि जाड़ो में ऊनी वस्त्र को पहनना आरामदायक होता है।

(ड़) रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट के कोकून को उबलते पानी मे डालना क्यों आवश्यक होता है ? कारण दीजिए।
उत्तर- रेशम प्राप्त करने के लिए प्यूपा से वयस्क कीट बनने से पूर्व ही कोकून को एकत्रित करके उन्हें उबलते पानी मे 95 से 97 तक लगभग 10-15 मिनट के लिए डाल दिया जाता है। इससे कोकून के चारो ओर लिपटे रेशो के बीच का चिपचिपा पदार्थ घुल जाता है तथा रेशम के रेशे पृथक हो जाते हैं।

(6) रेशम कीट के विभिन्न किस्मो से प्राप्त कुछ रेशम के रेशो के नाम लिखिए ?
उत्तर- विभिन्न रेशम कीटो से टसर रेशम, मूंगा रेशम, कोसा रेशम, एरी रेशम आदि रेशे प्राप्त किए जाते हैं।

(7) ऊन तथा रेशम के दो-दो उपयोग लिखिये?
उत्तर- ऊन से ऊनी वस्त्र एवं कंबल बनाये जाते हैं तथा रेशम से रेशमी वस्त्र एवं पैरासूट बनाए जाते हैं।

(8) भेड़ के रेशो को ऊन में संसाधित करने के विभिन्न चरणों को क्रमानुसार वर्णित कीजिए ?
उत्तर- चरण 1-भेड़ो के बालों की कटाई
  चरण 2- अभिमार्जन
  चरण 3- छटाई
  चरण 4- कताई
  चरण 5- रँगाई
  चरण 6- ऊनी धागा बनाना

(9) रेशम कीट के जीवन-चक्र का सचित्र वर्णन कीजिए ?
उत्तर- रेशम कीट शहतूत, अरण्डी, ओक इत्यादि के पेड़ों पर पाले जाते हैं। मादा रेशम कीट सैकड़ो की संख्या मव अंडे देती है जो शहतूत की पत्तियों की

निचली सतह पर चिपके होते हैं। इन अंडो से सफेद रंग के लार्वा निकलते हैं जिन्हें केटरपिलर/इल्ली/लार्वा कहा जाता है। ये पेड़ की कोमल पत्तियों को खाते हैं और 4 से 6 हफ़्तों में वृद्धि करके जीवन चक्र की अगली अवस्था मे प्रवेश करते हैं। रेशम कीट के लार्वा में एक विशेष ग्रंथि होती है जिसे रेशम ग्रंथि कहते हैं। इस ग्रंथि से अत्यंत महीन लसदार पदार्थ स्रावित होता रहता है जो प्रोटीनयुक्त होता है। लार्वा अंग्रेजी की संख्या 8 के आकार में आगे से पीछे की ओर गति करते हुए अपने चारों ओर इस लसदार पदार्थ को लपेटता जाता है जो हवा के संपर्क में आने पर सूखकर रेशम के रेशे में बदल जाता है। इसी बीच लार्वा प्यूपा में रूपांतरित हो जाते हैं। रेशम के रेशो से लिपटे हुए प्रत्येक प्यूपा एक सफेद गोलाकार संरचना में बंद हो जाते हैं। इन प्यूपायुक्त गोलाकार रचनाओं को कोया या कोकून कहते हैं।कोकून के भीतर ही प्यूपा विकसित होकर वयस्क रेशम कीट में बदल जाता है। अंत मे रेशम कीट कोकून के रेशो को काटते हुए बाहर निकल आते हैं तथा अपना नया जीवन चक्र प्रारंभ करते हैं। 
Class 7 Lesson 2 Class 7 Lesson 2 Reviewed by Akash on May 01, 2020 Rating: 5

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