आखिर अचानक से ऐसा क्या हो गया कि जो ट्विटर संबित पात्रा के डॉक्यूमेन्ट पर "मेनिपुलेटेड/मीडिया" का टैग लगा देता है उसी ट्विटर को ये पता नहीं चलता कि वामी कौमी लॉबी लोनी के बुड्ढे का जो वीडियो शेयर कर रहे हैं उसमें भी कुछ मैनुपुलेशन हो सकता है?
आखिर क्या कारण है कि RSS से जुड़े लोगों का वेरिफिकेशन वाला ब्लू टिक हटा लिया जाता है, यहां तक कि संघ के सर्वोच नेता मोहन भागवत और उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू का निजी ट्विटर हैंडल भी ब्लू टिक विहीन हो जाता है? क्या ये सब मशीन अपने आप कर रही थी या फिर मशीन का इस्तेमाल करके कोई और खेल कर रहा था? इसको समझने से पहले थोड़ा ट्विटर की नीति समझते हैं।
ट्विटर इंडिया का ऑफिस गुड़गांव में है। उनका यहां एक पब्लिक पॉलिसी डिपार्टमेन्ट है। यही पब्लिक पॉलिसी डिपार्टमेन्ट तय करता है कि शिकायत मिलने पर ट्विटर के किस कन्टेन्ट के साथ क्या व्यवहार करना है। कुछ समय पहले तक महिमा कौल इस पब्लिक पॉलिसी विभाग की चीफ थीं। कुछ समय पहले उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। उसके बाद उसी पद पर शगुफ्ता कामरान की नियुक्ति हुई।
जाहिर सी बात है शगुफ्ता कामरान ने आते ही कारनामे करने शुरु कर दिये। उन्होंने ट्विटर को अपनी जंग का माध्यम बना लिया और न सिर्फ संघ के लोगों पर हमला करना शुरु किया बल्कि सीधे भाजपा सरकार और मोदी से भी टक्कर ले लिया। मामले ने तूल पकड़ा तो सरकार भी अड़ गयी। लेकिन शगुफ्ता के रहते ट्विटर के झुकने का सवाल ही नहीं। ये विचारधारा की लड़ाई है। इसमें ट्विटर बर्बाद हो तो हो, शगुफ्ता की हार नहीं होनी चाहिए। हालांकि शगुफ्ता की इस जंग को झटका लगा और विवाद उठते ही ट्विटर ने संघ वालों के ब्लु टिक ही वापस नहीं किये बल्कि राष्ट्रवादियों को ब्लू टिक बांटना भी शुरु कर दिया।
लेकिन संघ, भाजपा और राष्ट्रवादियों के खिलाफ ट्विटर में रहकर शगुफ्ता की जंग अभी भी जारी है। उसने संसदीय समिति के सामने स्पष्ट कर दिया है कि हम देश का नहीं, अपना कानून मानेंगे। खैर, ऐसा ट्वीट जिहाद करनेवाली शगुफ्ता अकेली नहीं है। इससे पहले राहिल खुर्शीद भी जब ट्विटर में कन्टेन्ट हेड थे तब राष्ट्रवादियों के फॉलोवर ही कम कर देते थे। ट्रू इन्डोलॉजी को तो ब्लॉक ही कर दिया था जो उसके बाद खत्म ही हो गया।
कौन कहता है कि पढे लिखे लोग जिहाद नहीं कर सकते? जिन्हें भरोसा न हो वो शगुफ्ता और राहिल के कार्यकाल में ट्विटर की नीतियों का अध्ययन कर ले
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